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डी.सी. व ए.सी. मशीन आर्मेचर वाइन्डिंग - 4

  • ए.सी. आर्मेचर वाइन्डिंग से संबंधित परिभाषाएं निम्न हैं -
  1. पोल पिच - दो संलग्न एवं असमान पोलों की बीच की दूरी पोल पिच कहलाती है। पोल पिच = स्टेटर स्लॉटो की संख्या/पोलों की संख्या
  2. क्वॉइल पिच - एक क्वॉइल की दो सक्रिय साइड जो असमान धु्रवों के अन्तर्गत हो, के बीच की दूरी क्वॉइल पिच या वाइन्डिंग पिच या क्वॉइल स्पान कहलाती है।
  3. पिच फैक्टर - क्वॉइल पिच या वाइन्डिंग पिच तथा पोल पिच का अनुपात पिच फैक्टर कहलाता है। पिच फैक्टर = वाइनिडंग पिच/पोल पिच
  4. क्वॉइल गु्रप - यदि मशीन वाइन्डिंग में एक से अधिक क्वॉइलों को श्रेणी क्रम में संयोजित कर समूह बना दिया जाता है तो वह क्वॉइल गु्रप कहलाता है।
  • एकल परत वाइन्डिंग में स्टेटर या आर्मेचर में क्वॉइल की कुल संख्या, स्लॉटो की कुल संख्या की आधी होती है।
  • द्वि-परत वाइन्डिंग में स्टेटर या आर्मेचर में क्वॉइल की कुल संख्या, स्लॉटो की कुल संख्या के बराबर होती है।
  • पूर्ण पिच वाइन्डिंग में क्वॉइल पिच तथा पोल पिच बराबर होती है।
  • लघु पिच वाइन्डिंग में क्वॉइल पिच, पोल पिच से कम होती है।
  • पूर्णांकीय वाइन्डिंग में प्रति पोल, प्रति फेज , स्लॉटो की संख्या एक पूर्ण संख्या होती है।
  • भिन्नात्मक वाइन्डिंग में प्रति पोल , स्लॉट तथा प्रति पोल प्रति फेज , स्लॉट की संख्या भिन्नात्मक होती है। 

डी.सी. व ए.सी. मशीन आर्मेचर वाइन्डिंग - 3


  • डी.सी. आर्मेचर वाइन्डिंग दो प्रकार की होती है -
  1. लैप वाइन्डिंग                   
  2. वेव वाइन्डिंग 
  • क्वॉइल के सिरों को कम्यूटेटर सेग्मेन्ट पर जोड़ने की प्रक्रिया को क्वॉइल कनेक्शन कहा जाता है। क्वॉइल कनेक्शन मुख्यतः प्रोग्रेसिव तथा रिट्रोग्रेसिव प्रकार के होते हैं।
  • ग्राउलर एक विद्युतीय युक्ति है जिसका उपयोग मोटर का इन्सुलेशन प्रतिरोध चेक करने के लिए किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है -
  1. इन्टर्नल ग्राउलर         
  2. एक्सटर्नल ग्राउलर
  • इन्टर्नल ग्राउलर का उपयाग वृहद् डी.सी. मोटर के आर्मेचर तथा ए.सी. मोटर के स्टेटर में किया जाता है तथा एक्सटर्नल ग्राउलर का उपयोग लघु डी.सी. मोटर के आर्मेचर के लिए किया जाता है।
  • ग्राउलर का उपयोग मशीन के अन्दर शार्ट सर्किट, ओपन सर्किट, अर्थ टैस्ट, बैंलेस टेस्ट प्रकार के दोषों (fault) को चेक करने के लिए किया जाता है।
  • वाइन्डिंग में चालकीय तथा कुचालकीय पदार्थ उपयोग किये जाते हैं। 

डी.सी. व ए.सी. मशीन आर्मेचर वाइन्डिंग - 2


  • डी.सी. मशीन की आर्मेचर वाइन्डिंग में उत्पनन विद्युत वाहक बल प्रत्यावर्ती प्रवृत्ति का होता है।
  • डी.सी. आर्मेचर पर वाइन्डिंग करने के लिए निम्न दो पद्धतियों का उपयोग किया जाता है -
  1.  रिंग आर्मेचर पद्धति   
  2.  ड्रम आर्मेचर पद्धति 
  • डी.सी. आर्मेचर वाइन्डिंग से सम्बन्धित परिभाषाएं निम्न है -
  1. पोल पिच - इसे आर्मेचर चालकों की संख्या प्रति पोल या आर्मेचर  स्लॉटो की संख्या प्रति पोल से परिभाषित किया जाता है।
  2.  क्वॉइल पिच या क्वॉइल स्थान - एक क्वॉइल की दो सक्रिय साइड जो असमान ध्रुवो  के अन्तर्गत हो, के बीच की दूरी क्वॉइल पिच या वाइन्डिंग पिच या क्वॉइल स्पान कहलाती है।
  3.  कम्यूटेटर पिच - यह कम्यूटेटर सेग्मेंट पर एक क्वॉइल के दो सिरों को जोड़ने के बीच की दूरी है।
  4. बैक पिच - यह एक दूरी हे, जिसे आर्मेचर चालकों की terms में ज्ञात किया जाता है। कम्यूटेटर के विपरीत दिशा में किसी क्वॉइल की दोनों साइडो के बीच की दूरी को बैक पिच कहते हैं।
  5. फ्रन्ट पिच - आर्मेचर से कम्यूटेटर के ओर की एक क्वॉइल की अन्तिम भुजा तथा उससे अगली क्वॉइल की पहली भुजा के बीच की दूरी को फ्रन्ट पिच कहते हैं।
  6. वाइन्डिंग पिच - दो संलग्न क्वॉइलों की प्रथम एक्टिव साइडों के बीच की दूरी, वाइन्डिंग पिच कहलाती है। इसे Y द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह दूरी भी स्लॉटो अथवा चालकों की संख्या के रूप में व्यक्त की जाती है।
     लैप वाइन्डिंग के लिए, Y = Yp –Y f
     वेव वाइन्डिंग के लिए, Y = Yp +Y f

डी.सी. व ए.सी. मशीन आर्मेचर वाइन्डिंग - 1


  • आर्मेचर वाइन्डिंग, इलेक्ट्रिकल मशीन का वह मुख्य भाग है जिसमें विद्युत वाहक बल (e.m.f.) उत्पन्न होता है। ।A.C मशीनों में आर्मेचर वाइन्डिंग स्टेटर पर बने आधे ढके या खुले स्लॉटो  पर लपेटी जाती है जबकी डी.सी. मशीन में आर्मेचर वाइन्डिंग बंद स्लॉटो पर लपेटी जाती है, अतः स्टेटर भाग में क्वॉइलो के समूहों को निश्चित ढंग से रखा जाना, आर्मेचर वाइन्डिंग कहलाता है। इलेक्ट्रोमेग्नेट तैयार करने, पंखो, डी.सी. मोटर, ऑल्टरनेटर , त्रिकलीय मोटर, सिंगल फेज मौटर, रिले व अन्य विद्युत उपकरणों में आर्मेचर वाइन्डिंग के व्यावहारिक प्रयोग का विशेष महत्व है।
  • आर्मेचर वाइन्डिंग मुख्यतः दो प्रकार की होती है -
  1.  बन्द क्वॉइल  वाइन्डिंग (Closed Coil Winding) - यह वाइन्डिंग डी.सी. मशीनों में की जाती है और इसे डी.सी. आर्मेचर वाइन्डिंग भी कहते है। इसमें सभी क्वॉइलो के सिरों को एक-दूसरे के श्रेणी-क्रम में संयोजित करते हुए अन्त में दो सिरे प्राप्त होते हैं जो स्त्रोत में संयोजित कर दिए जाते हैं।
  • खुली क्वॉइल वाइन्डिंग (Open Coil Winding) - यह वाइन्डिंग ए.सी. मशीनों में की जाती है और इसमें सभी क्वॉइलो के सिरे स्वतंत्र रखे जाते है और उन्हें वान्छित क्रम में संयोजित किया जा सकता है। 

विद्युत अपघटन - 5

लैड एसिड सैल व निकिल आयरन सैल की तुलना
लैड एसिड सैल-
विवरण- 1.धनात्मक प्लेट,   PbO (लैड पराऑक्साइड)
2.ऋणात्मक प्लेट, स्पंजी सीसा   
3.इलेक्ट्रोलाइट,   तनु H2SO4  (गन्धक का अम्ल) 
4.औसत e.m.f.   2.1 V (सैल)   
5.आन्तरिक प्रतिरोध, तुलनात्मक कम
6.आपेक्षिक घनत्व, पानी बनने के कारण घटता-बढ़ता है।
7.दक्षता एम्पियर आवर,   90.95%
8.वाट आवर,72.80%
9.कीमत, निकल आयरन सैल से कम है।
10.यान्त्रिक शक्ति,कम
विवरण- लैड एसिड सैल
विवरण- 1.धनात्मक प्लेट,  निकिल हाइड्रोऑक्साइड Ni(OH)4 या निकिल ऑक्साइड (NiO2)
2.ऋणात्मक प्लेट, आयरन ऑक्साइड
3.इलेक्ट्रोलाइट,   पोटेशियम हाइड्रोक्साइड (KOH)
4.औसत e.m.f.   1.2V (सैल)     
5.आन्तरिक प्रतिरोध, तुलनात्मक कम
6.आपेक्षिक घनत्व, तुलना में अधिक
7.दक्षता 80%,( लगभग)
8.वाट आवर,60%( लगभग)
9.कीमत, लैड एसिड सैल से अधिक है।
10.यान्त्रिक शक्ति, अधिक         
लैड एसिड सैल में इलेक्ट्रोलाइट के आपेक्षिक घनत्व को मापकर आवेशित-निरावेशित अवस्था देखना -
क्र.स.     आवेशित अवस्था/            आपेक्षिक घनत्व
1.पूर्ण आवेशित बैट्री                     1.280-1.300
2.0.75 आवेशित बैट्री                   1.230-1.280
3.0.50 आवेशित बैट्री                   1.200-1.230
4.0.25 आवेशित बैट्री                   1.170-1.200
5.निरावेशित अवस्था                  1.110-1.140

विद्युत अपघटन - 4

प्राथमिक व द्वितीय सैल में अन्तर - 
(1)प्राथमिक सैल            
1.इन्हें पुनः आवेशित (चार्ज) नहीं किया जा सकता है।
2.ये वजन में हल्के होते हैं व कही भी आराम से ले जाए जा सकते हैं।
3 इनमें समय के साथ धारा की मात्रा भी कम हो जाती है।
4.इस सैल को उपयोग में लेने से पहले चार्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है।
5.इनका जीवनकाल बहुत कम होता है।      
6.इनका e.m.f. होता है।
(2) द्वितीयक सैल (बैट्री)
1. इन्हें पुनः आवेशित (चार्ज) किया जा सकता है।
2.ये भारी होते है। इनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में परेशानी रहती है।
3.ये स्थिर वोल्टेज पर काफी समय तक धारा दे सकते है।
4.इन्हें उपयोग में लेने से पूर्व चार्ज करना पड़ता है।
5.इनका जीवनकाल लम्बा होता है।
6. इनका e.m.f.अधिक होता है।     

विद्युत अपघटन - 3

प्राथमिक सैल को पुनः आवेदित (चार्ज) नहीं किया जा सकता है जबकि द्वितीयक सैल को पुनः आवेशित (चार्ज) किया जा सकता है।
जब सैल को काम में लेते हैं तो समय के साथ वि.वा.ब. का मान घट जाती है, वह शून्य हो जाती है तथा इसे सैलों का धु्रवीकरण कहते है।
प्राथमिक सैल की विशेषताएं (Characterisics of Primary Cell)-
1. सैल का वि.वा.ब. अधिक व स्थिर होना चाहिए।
2. सैल का आन्तरिक प्रतिरोध कम होना चाहिए।
3. प्राथमिक सैल से जब किसी प्रकार की धारा नहीं ली जा रही हो तो उस स्थिति में सैल में कोई रासायनिक क्रिया नहीं होनी चाहिए।
4. सैलों में पोलेराइजेशन नहीं होना चाहिए।

विद्युत अपघटन - 2

संयोजकता किसी तत्व के अणुओं के दूसरे तत्व के अणुओं के साथ जुड़ने की क्षमता को प्रदर्शित करती है। इसकी मात्रा हाइड्रोजन अणुओं के उन अणुओं की संख्या के बराबर होती है जिनके साथ तत्व का परमाणु किसी रासायनिक क्रिया में भाग ले सकता है।
फैराडे के प्रथम नियम के अनुसार जिस समय इलेक्ट्रोलाइट में धारा गुजारी गयी, के समानुपाती होते हैं।
वैज्ञानिक फैराडे के द्वितीय नियम के अनुसार, यदि एक समान धारा पृथक-पृथक् इलेक्ट्रो लाइट्स में से गुजारी जाए तो विमुक्त हुए आयनों की संहति उन पदार्थो के विद्युत रासायनिक तुल्यांक के भार के समानुपाती होती है। 

विद्युत अपघटन - 1


जब किसी अम्लीय एवं अकार्बनिक विलयन (Solution) में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह अपने अवयवों (Components) में बंट जाता है, यह क्रिया विद्युत का रासायनिक प्रभाव कहलाती है।
चालक जिनमें धरा प्रवाहित करने की रासायनिक अपघटन हो जाता है उसे इलेक्ट्रोलाइट (विद्युत अपघट्य) कहा जाता है।
रासायनिक अपघटन में ऋणात्मक आयन (-) धनात्मक  या एनोड की ओर जाते हैं तथा धनात्मक आयन (+) ऋणात्मक इलेक्ट्रॉड की ओर जाते है, इस प्रकार इलेक्ट्रोलाइट में धारा का प्रवाह शुरू हो जाता है। ऋणात्मक इलेक्ट्रॉड कैथोड कहलाता है।
विद्युत धारा को इलेक्ट्रोलाइट में स्थापित करने पर इसके अणु दो भागों में विभक्त हो जाते हैं, इन्हें आयन कहते है। आयन विद्युत के आवेशित का हैं एवं ये कण् रासायनिक क्रिया में भाग लेते है।