Showing posts with label अर्थिंग. Show all posts
Showing posts with label अर्थिंग. Show all posts

अर्थिंग - 2


ELCB युक्ति रिले की भांति धारा अथवा वोल्टेज चालित प्रकार की होती है और केवल 100mA। लीकेज धारा पर ही प्रचलित हो सकती है।
अर्थिंग तार को सुरक्षित रखने हेतु भूमितल से 30 से.मी.नीचे से तथा 12.5mm व्यास  के G.I. पाइप से ले जाना चाहिए।
पाइप के अर्थ इलेक्ट्रॉड पर पेन्ट किया हुआ नहीं होना चाहिए। 38mm  व्यास और 2.5 मी. लम्बाई का छिद्र युक्त पाइप होना चाहिए।
अर्थिंग हेतु प्लेट इलेक्ट्रॉड 60 से.मी. x 60से.मी. x  63मि.मी., G.I.  तथा ताम्बे की 60 x  60 x 3.18मि.मी. होनी चाहिए।
अन्तर्राष्ट्रीय मानक IEC 60364ने दो अक्षरों वाले कोड का प्रयोग करते हुए अर्थिंग व्यवस्था को तीन अवयवों TN,TT व IT में बांटा है।
TN अर्थिंग व्यवस्था में जनरेटर या ट्रांसफार्मर के एक पॉइंट  को अर्थ से कनेक्ट किया जाता है।
TT अर्थिंग सिस्टम में कन्ज्यूमर के प्रोटेक्टिव अर्थ कनेक्शन को लोकन कनेक्शन द्वारा अर्थ को उपलब्ध कराया जाता है। यह जनरेटर में किसी भी प्रकार के अर्थ कनेक्शन से स्वतंत्र होता है।
IT नेटवर्क में इलेक्ट्रिकल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का अर्थ से कोई कनेक्शन नहीं होता है बल्कि इसका केवल उच्च इम्पीडेन्स ;(Impendance) कनेक्शन होता है। 

अर्थिंग - 1

यह विधि जिसमें परिपथ के शॉर्ट होने पर उससे प्रवाहित लघु परिपथ (Short circuit) धारा को एक इलेक्ट्रॉड की सहायता से भूमि में सुगमतापूर्वक प्रवाहित किया जा सके, अर्थिंग कहलाती है।
भारतीय विद्युत नियम- 1956 के 32, 51, 61, 62, 67, 69, 89 व 90 उप-नियम इसके लिए प्रभावी है।
यदि हम डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड की मेटल बॉडी को अर्थ वायर की सहायता से अर्थिंग प्रदान करते है तो विद्युतीय शॉक से बचा जा सकता है।
एक धातु का पाइप, वाटर पाइप या अन्य कन्डक्टर जो भारतीय विद्युत नियमों के अनुरूप हो उसे पृथ्वी में दबा दिया जाता है, अर्थ इलेक्ट्रॉड कहलाता है।
अर्थिंग के लिए जब दो भागों को एक चालक द्वारा जोड़ा जाता है तथा फ़ॉल्ट  होने पर इससे फ़ॉल्ट धारा प्रवाहित होती है, इसे अर्थ चालक कहते है।
वह तार जिससे अर्थ इलेक्ट्रॉड को कनेक्ट किया जाता है, अर्थिंग लीड कहलाता है।
वह तार जो विद्युत चार्ज से पूर्ण हो, और अर्थ के साथ विभवान्तर रखे, लाइव तार कहलाता है।
प्लेट की सहायता से की गई अर्थिंग प्लेट अर्थिंग कहलाती है। यह अर्थिंग सरल व विश्वसनीय होती है। इस विधि में भूमि में लगभग 2-2.5 मीटर अथवा वहां तक जहां नमी निकल आए गड्ढ़ा बनाया जाता है।