- वायरिंग ले-आउट के लिए निम्न पदों का अनुसरण किया जाता है -
- सबसे पहले भवन का सिविल इंजिनियर द्वारा बना ले-आउट लेते है।
- ले-आउट में विद्युत लाइन के प्रवेश एवं निर्गत स्थानों को चिन्हित करते हैं।
- ले-आउट में भवन मालिक की आवश्यकता के अनुसार विद्युत बल्ब, ट्यूबलाइट, पंखा, दीवार साॅकेट आदि के बिन्दु चिन्हित करते हैं।
- स्प्लिट लोड वायर किसी भी उपभोक्ता इकाई में उपयोग होने वाला सबसे सुरक्षित प्रकार का वायर है जो कि ओवरलोडिंग, शोर्ट-सर्किट, अर्थ-लीकेज आदि समस्याओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- विभिन्न प्रकार के घरेलू उपकरणों के दोष ज्ञात करना तथा उनके दोष-निवारण का ज्ञान एक इलेक्ट्रिशियन के लिए अति आवश्यक है। अतः किसी भी उपकरण को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसका निरीक्षण व रख-रखाव समय-समय पर करना चाहिए।
- सजावटी लाइटों के लिए ड्रम फ्लैशर, सीक्वेन्शियल कन्ट्रोलर, निऑन फ्लैशर आदि उपयोग में लिए जाते हैं।
- बंद हुए सजावटी बल्बों की श्रेणी में से फ्यूज बल्ब का पता लगाने के लिए निम्न दो विधियां प्रयोग की जाती है -
- JFET विधि
- निऑन बल्ब विधि
- औद्योगिक वायरिंग, घरेलू तथा व्यावसायिक वायरिंग के ही समान होती है। औद्योगिक तथा घरेलू दोनों प्रकार की वायरिंग में त्रिकलीय-चार तार प्रणाली उपयोग में ली जाती है। औद्योगिक वायरिंग में स्विच-फ्यूज के स्थान पर सर्किट ब्रेकर का उपयोग किया जाता है।
- मानक कोड SI 732: 1989 को इलेक्ट्रिक वायरिंग इन्सटॉलेशन के लिए उपयोग किया जाता है।
- मानक कोड SI 6665 रू 1972 को औद्योगिक लाइटिंग के लिए उपयोग किया जाता है।
- मानक कोड SI 3043 रू 1987 को अर्थिंग के लिए उपयोग किया जाता है।
- औद्योगिक कन्ट्रोल पेनल को उद्योगों में उपयोग किया जाता है। जिनका ऑपरेटिंग वोल्टेज 600 वोल्ट या इससे कम होता है।
- औद्योगिक कन्ट्रोल पेनल में पावर सर्किट उपकरण जैसे-अतिधारा युक्ति या मोटर कन्ट्रोलर, कन्ट्रोल सर्किट उपकरण जैसे पुश बटन, लाइटें तथा कन्ट्रोल रिले आदि उपयोग किये जाते हैं।
- कन्ट्रोल पेनल की डिजाइन वैद्युत विशिष्टताएं जैसे - वोल्टेज, फेजों की संख्य, आवृत्ति, फुल लोड धारा रेटिंग, लघु परिपथ धारा रेटिंग आदि को ध्यान में रखकर करनी चाहिए।
- किसी भवन में वैद्युत इन्सटॉलेशन के कार्य की सफलता, वैद्युत वायरिंग के सही आयोजन पर निर्भर करती है। भवनों के लिए वायरिंग का आयोजन करते समय भविष्य में किए जाने वाले विस्तार, वायरिंग कार्य में सुगमता, वायरिंग के उपयोग के समय सुरक्षा तथा उचित प्रदीपन को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त भारतीय विद्युत नियमों का भी पालन किया जाना चाहिए। आवासीय भवन की वायरिंग के लिए उस भवन का मानचित्र एवं भवन मालिक की आवश्यकताओं के अनुरूप ही वैद्युत वायरिंग की योजना तैयार की जाती है।